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Abhimanyu Garbh Sanskar

अभिमन्यु गर्भ संस्कार - विशेषताए ध्येय एवं उद्देश ( Hindi )

अभिमन्यु गर्भ संस्कार

विशेषताए ध्येय एवं उद्देश :

स्वस्थ, सुदृढ, सौभाग्यशाली, धनवान, विव्दान, निर्दोष, निर्भय, आनंदमय, दीर्घायु एवं दिव्य संतान प्राप्ति। पारिवारिक कलह व सामाजिक अप्रवृत्ती, गलत तत्वों के परिणामों से शिशु को मुक्त रखना एवं दिव्य पीढी का निर्माण । परिवार, कुल, धर्म, राष्ट्र एवं विश्‍व के कल्याण का भाव शिशु में जागृत करना । भारत के साथ साथ पुरे विश्‍व में गर्भसंस्कार संबंधित जागृती लाना ।

शिविर संबंधित :

गर्भ ध्यान, मंत्र ध्यान, प्राणायाम, सामान्य व्यायाम, मातृ पितृ संस्कार, धर्म संस्कार, षटचक्र संस्कार, मंत्र संस्कार, शिशु संवाद, गर्भवती अंतर्मन की प्रार्थना, सामान्य प्रसुती, अनुवांशिक रोगों से शिशु को संरक्षण. शिशु संरक्षण चक्र, मातृत्व उत्सव, श्रीकृष्ण ध्यान, शिशु को देव दर्शन, दिव्य शक्तियों का आवाहन, आदि. प्रथम माह से नौ माह पुर्ण होने तक सभी गर्भवतियों के लिए उपयुक्त शिविर । गर्भाधान पुर्व भी संतान ईच्छुक महिलाए शिविर में आ सकती है ।

गर्भवतियों से आत्म निवेदन :

गर्भ संस्कार का अर्थ क्या है सर्वप्रथम वह समझ लें । गर्भ संस्कार वह होते है जो शिशु के जगत में आगमन के उपरांत उसके साथ जीवन भर रहे । गर्भ संस्कार अर्थात गर्भ में शिशु को माँ व्दारा जीवन जीने की कला का प्रशिक्षण है । गर्भ संस्कार सुसंस्कार तो होते ही है, पर कुसंस्कारों के रुप में भी स्थापित हो सकते है । यह तो उस गर्भस्थ शिशु के माँ पर निर्भर है कि नौ माह का समय वह कैसा व किस प्रमाण में निभाती है । गर्भावस्था में मांँ की जीवनशैली एवं स्वभावशैली हर तरह की सकारात्मकताओं से युक्त होनी चाहिए । अभिमन्यु गर्भ संस्कार यह एक एैसी प्रशिक्षण विधी है जो शिशु का सौभाग्य गर्भ के भीतर ही सुनिश्‍चित कर देती है ।

शिशु गर्भ में केवल स्त्री-पुरुष के शारीरिक मिलन का नतिजा नही है । शरीर के संग दो आत्माओं का मिलन होता है, जो नई आत्मा को आमंत्रण देता है । फिर शरीर यंत्रणा अपने शरीर जैसा घर उस आत्मा के लिए बनाना प्रारंभ कर देती है । गर्भ में केवल शरीर नही बनता, उस बनते शरीर में वह आंमत्रित आत्मा एक अंतर्मन के साथ निवास कर रही होती है, जो नौ माह तक माता पिता के व्दारा नये संस्कारों को धारण करती है , इसमें माँ की भुमिका अधिक क्रियाशील होती है ।

गर्भस्थ शिशु की हर साँस माँ के साँस से होती है । शिशु की हर आस माँ के आस से होती है । वह माँ की आँखो से दुनिया को देखता है । माँ के कानों से सुनता है । माँ के हर भाव से उसका भाव होता है । माँ नौ माह में कितना समय अपने शिशु की ओर ध्यान देती होगी ? परंतु शिशु गर्भ में से प्रत्येक क्षण माँ से जुडा होता है । माँ की गर्भ में वह पहले दिन से ही पुरा सचेत होता है । उसकी सचेतना ही गर्भसंस्कार की नींव बनने लगती है ।

जब स्त्री को पहली बार मालूम हो जाए कि वह गर्भवती हैं, तब तक उसके गर्भ में शिशु के शरीर का निर्माण गती ले चुका होता है । माँ बनने के बाद स्त्री का व्यक्तित्व निखर जाता है । स्त्री का पुरा सौंदर्य उसके माँ बनने पर प्रकट होता है । माँ बनने की इस तृप्ति से माँ में एक दीप्ति नजर आती है जो अद्भुत होती है । माँं बनना एक घडी है आध्यात्म की, एक स्थिरता है ममत्व की, जो स्त्री के लिए विश्‍व में सर्वोत्तम सुख व आनंद का प्रतिक है ।

जीव की गर्भ में स्थापना एक आध्यत्मिक एवं प्रसव एक नैसर्गिक प्रक्रिया है। प्रसव घडी से स्त्री के जीवन में बहुत कुछ बदलाव आता है। एक लडकी प्रथम विवाहिता बन उपरांत वह माँ बन जाती है । लेकिन इस बदलाव में उसके स्वभाव में भी परिवर्तन आने लगते है । जीवन शैली में परिवर्तन सा झलकता है, परंतु प्रत्येक परिस्थिती में अपने आपको योग्य बना लेने का वरदान प्रकृती ने स्त्री को दे रखा है । केवल वह प्रकृती के इस परिवर्तन के साथ संघर्ष न करते हुए समर्पण का भाव रखे, जिससे दसों दिशाओं से उसके जीवन में आनंद बरस जाये ।

जब बच्चा गर्भ में आता है तब से माँं की जिम्मेदारी है कि उसको सुसंस्कार दें। उसके लिए माँ को थोडा-सा विचार करना चाहिए कि वह स्वयं कैसे रहे? माँ तथा जन्म लेने वाले शिशु दोनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए कुछ नियमों का पालन करना जरुरी होता है। गर्भावस्था नारी जीवन की एक ऐसी अवस्था है, जिसमें उसे विशेष परिस्थितियों और कभी कभार असुविधाओं का सामना करना पड सकता हैं । माँ और शिशु का स्वास्थ्य एक ओर जहाँ माता पिता के शारीरिक प्रकृति और मनोवैज्ञानिक स्थितियों पर निर्भर करता है, वहीं रहन-सहन, खान-पान व अन्य आदतों का भी सीधा प्रभाव पडता है। इस अवधि में समय पलक झपकते बीतते प्रतीत होता है। नौ महिने जैसे उस शिशु के लिए पाठशाला सी होती है । जिस पाठशाला में अपना घर मानकर शिशु अपने माँ के साथ प्रतिक्षण कुछ न कुछ सिखता रहता है । इस पाठशाला में उसे इतना सक्षम बनना होता है कि वह गर्भ से बाहर आकर इस दुनिया के रंगमंच पर अपना किरदार निभा सके । भावी माता पिता की भुमिका इसमें अत्यधिक महत्वपुर्ण होती है ।

गर्भ संस्कार व गर्भाधान संस्कार से ही जगत की सर्वोत्तम संतान एवं सुख की प्राप्ति होती है । जैसे हमारी पीढी की सुदृढता हमारे माता पिता के सुदृढता पर निर्भर थी, वैसे ही आने वाली पीढी हम पर निर्भर होगी । नौ माह तक स्त्री के साथ साथ शिशु का तन-मन स्वस्थ रखना होगा । केवल शारीरिक स्वास्थ्य से तो शिशु सुदृढ तो होगा पर मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाये तो शिशु श्रेष्ठ एवं सर्वगुण संपन्न होगा । अगर पूर्व नियोजन व सकारात्मक गर्भ संस्कार कर माता पिता संतान प्राप्ती करें तो शिशु में शारीरीक, मानसिक व आध्यात्मिक स्तर पर निर्दोष एवं परिपुर्ण संतान की प्राप्ती हो जाती है ।

माँ के साथ साथ पिता के संवेदनाओं का भी बच्चे पर असर होता है, क्योंकि माँ के बाद बच्चे के सबसे निकट पिता ही होता है । घर के बाकी सदस्यो की संवेदनायें भी कुछ न कुछ गर्भस्थ शिशु ग्रहण करता है । घर के माहौल का भी शिशु पर परिणाम होता है, पर सभी बातों का माध्यम एक ही है और वो है माँं । वो नौ माह तक अपने आपको किस तरह ढालती है, यह शिशु के दृष्टिकोण से महत्वपुर्ण होता है ।

अभिमन्यु गर्भ संस्कार पुस्तक तथा सीडीज व्दारा विश्‍व के कोने कोने तक यह संकल्पना पहुंच रही है । पुस्तक एवं सीडीज के अलावा प्रत्यक्ष अनुभुती लेने के लिए एवं गर्भस्थ शिशु को देने के लिए अभिमन्यु गर्भ सस्ंकार शिविर में हो सके तो अवश्य सहभाग लें । पुस्तक एवं सीडीज से बहुत कुछ मिलना निश्‍चित है, परंतु शिविर में कुछ संस्कार प्रत्यक्ष में होना है वह भी महत्वपुर्ण है । हो सके तो अपने शहर में अभिमन्यु गर्भ संस्कार शिविर का आयोजन करवायें । हमारे स्वनियोजित शिविर गिने चुने शहरों में तो नित्य होते ही है, पर सामाजिक संगठनो व्दारा शिविरों का प्रत्येक शहर में बडा आयोजन होना आवश्यक है । बडे आयोजन समयक़ी आवश्यकता है ।

अभिमन्यु गर्भ संस्कार व्दारा आपको स्वस्थ, सुदृढ, सौभाग्यशली, धनवान, विद्वान, निर्दोष, दिर्घायु, निर्भय, आनंदमय एवं दिव्य संतान की प्राप्ती सुनिश्‍चित है । अत: ऐसी संतान प्राप्ति के लिए आपको शुभकामनाओं के साथ हम आपका स्वागत एवं अभिनंदन करते है ।

सर्वमंगलम् भवतु । शुभं भवतु ॥

- मनोज बुब

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